Safety Kit for First Aid: दुर्घटना आदि में यदि किसी व्यक्ति की सांस रुक भी जाती है तो उसे तुरंत कृत्रिम सांस देना अत्यधिक आवश्यक होता है। इसलिए किसी बेहोश व्यक्ति को प्राथमिक उपचार देते समय सर्वप्रथम यह मालूम करें कि उसकी सांस चल रही है या नहीं। यदि सांस लेने में रुकावट हो तो कृत्रिम श्वसन की व्यवस्था की जाए।
कृत्रिम सांस देने के लिए सर्वप्रथम श्वास नली को साफ करना चाहिए। रोगी को सीधा लिटाकर उसका सिर पीछे की ओर झुकाएं अथवा गर्दन को नीचे झुकाएं या ठोढ़ी ऊपर उठाकर अपनी अंगुली तथा अंगूठे से उसका मुंह खोलें फिर तर्जनी अंगुली में रुमाल या साफ कपड़ा लपेटकर मुंह में जमी हुई गंदगी साफ करें। हो सकता है इसकी सफाई करने से ही मरीज सांस लेना आरंभ कर दे।
कभी-कभी बेहोश होने पर मांसपेशियों के फैलने के कारण जीभ कण्ठ नली की ओर मुड़ जाती है जो सांस लेने में बाधक होती है। ऐसी स्थिति में पहले जीभ को सीधा करें। मुंह में अंगुली डालते समय सावधानी रखें, क्योंकि बेहोशी की हालत में रोगी आपकी अंगुली काट सकता है।
यदि किसी बच्चे की श्वास नली को साफ करना हो तो उपरोक्त विधि के अतिरिक्त बच्चे को उल्टा कर, सिर नीचे की ओर करके उसकी पीठ पर हल्के-हल्के मुक्के लगाएं। इससे बच्चे की श्वास नली साफ हो जाती है।
यदि श्वास नली साफ करने पर भी सांस पुन: चालू न हो तो कृत्रिम सांस देने के लिए निम्न क्रियाएं दर्शायी गई हैं
प्राथमिक उपचार हेतु सुरक्षा किट Safety Kit for First Aid
वर्कशॉप में कार्यरत मजदूरों को कभी भी हल्की या गंभीर चोट आ सकती है इसलिए जरूरी है कि प्राथमिक उपचार की कुछ विशेष सामग्री व दवाएं सुरक्षा किट के रूप में वहां पर हर समय उपलब्ध रहें। इन सामग्रियों व दवाओं के तुरंत प्रयोग से घायल व्यक्ति को बहुत राहत पहुंचती है। ये निम्न प्रकार हैं
- टिंक्चर आयोडीन (Tincture iodine),
- मरक्यूरी क्रोम (Mercury Chrome),
- बरनाॅल (Bernol),
- टिंक्चर बेंजीन (Tincture benzene),
- डेटॉल (Dettol),
- दर्दनाशक औषधियां (Pain killer medicines); जैसे-Combiflam आदि,
- मूर्च्छा दूर करने की औषधियां,
- पटि्टयां (Bandages),
- जालीदार कपड़ा (Gauge),
- रूई (Cotton),
- सेफ्टी पिन (Safety pins),
- कच्चा प्लास्टर (Temporary plaster),
- लकड़ी की छोटी पटि्टकाएं (Small wooden planks),
- ग्लास (Tumbler),
- ड्रॉपर (Dropper) तथा
- कैंची, छोटा चाकू एवं नेत्र शोधन सामग्री आदि।
रक्तस्राव तथा उसका नियंत्रण (Bleeding and its Control)
किसी भी श्रमिक को कार्यशाला में कार्य करते हुए किसी भी समय चोट लग सकती है। चोट कार्यशाला में लगे या घर से बाहर किसी वाहन से टकराने से, अनेक बार यह देखा गया है की छोटी-सी चोट भी घातक सिद्ध हो सकती है, शारीरिक रूप से सदमा पहुंचा शक्ति है एवं उससे मृत्यु तक हो सकती है। चोट के इन दुष्परिणामों से बचने का एक ही उपाय है कि उससे होने वाले रक्तस्राव को जल्दी बंद किया जाए।
हमारे शरीर में रक्त परिसंचरण तंत्र में रक्त वाहिकाओं द्वारा घूमता रहता है। चोट लगने पर जब ये वाहिकाएं (धमनियां-शिराएं) टूट-फूट जाती हैं तो रक्तस्राव होने लगता है। वैसे तो हमारे शरीर में ऐसी व्यवस्था है कि रक्त का स्राव स्वत: रुक जाए। वास्तव में हमारा शरीर ऐसा करता भी है। कभी-कभी इन प्रयत्नों में सफलता नहीं मिलती, उस समय बाहरी प्रयत्नों से रक्तस्राव को रोकना आवश्यक हो जाता है।
रक्तस्राव रोकने की जानकारी से पूर्व विभिन्न प्रकार के रक्तस्राव के बारे में जानकारी होना आवश्यक है।
- धमनियों, शिराओं या कोशिकाओं से रक्तस्राव आरंभ हो सकता है। कोशिकाओं से रक्तस्राव उसी समय होता है जब हमें मामूली खरोंच या चोट आदि लगी हो।
- धमनियों से भी रक्तस्राव हो सकता है। यह रक्त चमकीले लाल रंग का होता है और रक्त झटके के साथ तेजी से निकलता है जबकि शियाओं से होने वाला रक्तस्राव धीरे-धीरे निरंतर होता है और उसका रंग अपेक्षाकृत गहरा लाल मैरून रंग का होता है।
- शिराओं से निकलने वाले रक्त का रंग उनमें उपस्थित कार्बन डाइ-ऑक्साइड पर निर्भर करता है। यदि कार्बन डाइ-ऑक्साइड अधिक होती है तो उसका रंग अधिक काला होता चला जाता है।
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