Injury Problem: चोट लगने से उत्पन्न होने वाली समस्या से बचाव के उपाय

Injury Problem: चोट लगने से उत्पन्न होने वाली समस्या से बचाव के उपाय

पट्टियां दुर्घटना में हड्डी टूट जाने पर कभी-कभी टूटी हड्डी के नुकीले भाग आस-पास की मांसपेशियों में धंस जाते हैं। इससे पेशियों की रक्तवाहिकाएं कट जाती है और लगातार रक्तस्राव होने लगता है। इस स्थिति में टूटी हड्डी के एक ओर लकड़ी की पतली पट्टी या तख्ता (splint) रखकर कसकर उस पर पट्टी बांध देना श्रेयस्कर होता है। इससे रक्तस्राव रुक जाता है।

नकसीर छूटना नाक से खून बहना एक आम बात है, लेकिन कभी-कभी नाक से बहने वाले खून की थोड़ी-सी मात्रा भी आदमी को मूर्छित कर देती है। नाक से तो थोड़ी मात्रा में ही रक्त बाहर आता है, लेकिन ऐसा हो सकता है कि अधिकांश खून नाक से गले में होता हुआ पेट में चला जाए। इस दशा में रोगी के शरीर में सूजन आ जाती है और फिर उसे खून के कतरों की उल्टी लग जाती है।

नकसीर के अनेक बार गंभीर कारण होते हैं; जैसे-सिर की हड्डी टूट जाना, चेहरे पर चोट, सीनुसाइटिस, नाक के अंदर संक्रमण, अधिक रक्तदाब आदि।

सिर की चोट छोड़कर, यदि अन्य कारणों से खून बहता है, तो खून रोकने के लिए

  • नाक पर उंगलियों से दबाव डालना चाहिए।
  • रोगी को बैठा देना चाहिए जिससे खून गले और फेफड़ों में न भर सके।
  • नाक के ऊपर बर्फ रखनी चाहिए क्योंकि ठंडक पहुंचने से भी रक्तस्राव रुक जाता है।
  • विशेषतः उच्च रक्त दब से पीड़ित रोगियों को, जो ऐसी अवस्था में बहुत बेचैन या परेशान हो जाते हैं, शांत और स्थिर अवस्था में रखना चाहिए।

आंतरिक रक्तस्राव (Intemal Bleeding)

अनेक बार ऐसा होता है कि चोट लगने पर रक्त शरीर के बाहर नहीं निकलता वरन् किसी आंतरिक अंग से निकलकर अन्य आंतरिक अंगों में जमा होने लगता है। यह स्थिति आमतौर से घातक हो सकती है। इस दिशा में अनेक बार पीड़ित व्यक्ति बेहोश हो जाता है और बेहोशी की हालत में ही मर जाता है। मुंह और गुदा से तथा पेशाब के साथ खून आना किसी गंभीर बीमारी या आंतरिक चोट का संकेत होता है। आंतरिक रक्तस्राव निम्न कारणों से हो सकता है

  1. किसी आंतरिक हड्डी के टूट जाने पर।
  2. पेट में फोड़ा होने पर।
  3. विकृत यकृत या तिल्ली रक्तस्राव होने पर।
  4. फेफड़ों और गुर्दों रक्तस्राव होने पर।

आंतरिक रक्तस्राव होने पर रोगी सदमे की स्थिति में आ जाता है, उसके ब्राह्म लक्षण हो सकते हैं

  • नाड़ी की गति धीमी या फिर बहुत तेज हो जाए।
  • रक्त दाब गिरने लगता है।
  • त्वचा पीली पड़ने लगे, शरीर ठंडा पर जाए और रोगी पसीने से लथपथ हो जाए।
  • जल्दी-जल्दी प्यास लगना और बेचैनी बैठ जाना।
  • सास कभी बहुत तेज और कभी बहुत धीरे चलने लगना।
  • रोगी को मितली आना और उल्टी हो जाना।

यदि समय रहते आंतरिक रक्तस्राव को रोका नहीं जाता तो रोगी की पुतली फैल सकती है, जिसका अर्थ है मृत्यु। पसलियों के टूटने से छाती में आंतरिक रक्तस्राव हो सकता है। ऐसा होने पर कभी-कभी खांसी से फूंक के साथ चटकीला लाल रंग का खून आने लगता है। यह फेफड़े में चोट की निशानी है। पेट में चोट लगने से भी उल्टी के साथ चटकीला लाल रंग या गहरा लाल अथवा कॉफी जैसे रंग का रक्त आ सकता है। यकृत तथा तिल्ली के फटने से उदरीय गुहा में पर्याप्त मात्रा में रक्त एकत्र हो जाता है। ऐसी स्थिति में रोगी सदमे की स्थिति में हो जाता है। साथ ही उसका पेट भी फूलने लगता है।

यहां इस बात की जानकारी देना उचित होगा कि आंतरिक रक्तस्राव किसी वयस्क की हड्डी के साधारण अस्थि भंग से भी हो सकता है। ऐसा होने पर आस-पास के ऊतकों में एक से तीन फीट तक रक्त जमा हो सकता है। कुल्हे की हड्डी टूट जाने पर श्रोणि गुहा (पेल्विक कैविटी) में रक्त जमा हो जाता है। इस दशा में यदि समय पर उपचार नहीं किया जाता तो रोगी अत्यधिक रक्तस्राव के कारण मर सकता है। विशेष बात यह है कि इस प्रकार के रक्तस्राव में खून का एक भी कतरा शरीर के बाहर नहीं निकलता।

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